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छोटे छोटे दुःख

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2906
आईएसबीएन :81-8143-280-0

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जिंदगी की पर्त-पर्त में बिछी हुई उन दुःखों की दास्तान ही बटोर लाई हैं-लेखिका तसलीमा नसरीन ....

 

मेरी दुखियारी वर्णमाला


दुनिया के इक्कीस करोड़ लोग बांग्ला भाषा में बातें करते हैं, बंगाली के लिए यह बहुत बड़े गौरव की बात है। लेकिन बंगाली क्या अपनी भाषा को लेकर क्या सच ही गौरवान्वित है? जिस भाषा को प्यार करते हुए सन् 52 में अनगिनत बंगाली राजपथ पर उतर आए, जिस भाषा के प्रति ममता ने एक स्वाधीन राष्ट्र का सपना रचा था और जो आकाशचारी सपना सुदीर्घ नौ महीने तक जंग करने के बाद, हाथ की मुट्ठी में आ गया था, बंगाली क्या उस स्वप्नमय भाषा के लिए गर्व महसूस करता है? मुझे ऐसा नहीं लगता। पश्चिम बंगाल की हालत बंगलादेश से ज़्यादा करुण है। वहाँ कान लगाते ही अंग्रेजी-हिंदी गानों की गँज सनाई देती है। बांग्ला की नहीं! बांग्ला मानो अछूत भाषा हो! इस भाषा में बातचीत करने से जाति में नहीं उठा जाता। जाति में उठने की पहली शर्त है अपनी भाषा बांग्ला का त्याग! हाय अभागी जाति! बांग्ला राष्ट्र होने के बावजूद पश्चिम बंगाल के दफ्तर-अदालत में सारे काम अंग्रेजी में होते हैं; दुकान-पाट के चंद साइन बोर्ड ही, बांग्ला में होते हैं, बाकी या तो अंग्रेजी में या हिंदी में! लड़के-लड़कियाँ अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ते हैं। कहते हैं, अंग्रेजी-हिंदी के अलावा, कहीं कोई भविष्य नहीं है। अच्छी नौकरी के लिए बंगाली लोग-बाग दिल्ली-बम्बई भाग रहे हैं। जो गैर-बंगाली, पश्चिम बंगाल में काम करने आते हैं, वे लोग जिंदगी भर के लिए एक अक्षर बांग्ला जाने बिना ही वहाँ रस-बस सकते हैं।

भिन्न-भिन्न भाषाओं के दबाव में पश्चिम बंगाल की बांग्ला भाषा के प्राण लगभग होठों पर जाने-जाने को हैं! भाषा के प्राण बचाने के लिए वहाँ के चंद बंगाली सड़कों पर उतरने लगे हैं। आंदोलन करने पर भी कोई बहुत बड़ा फायदा होगा या हो रहा है, मुझे नहीं लगता। पश्चिम बंगाल के बंगालियों का कहना है- 'बांग्ला, बंगलादेश में ही टिकी रहेगी।'

बंगलादेश में बंगालियों की संख्या ज़्यादा है। यह किसी देश का छोटा-सा दरिद्र प्रदेश नहीं है, जो बांग्ला की रक्षा में कोई अशांति या हंगामा हो। लेकिन बंगलादेश में ही क्या वाकई बांग्ला की रक्षा हो रही है? बांग्लाभाषा को कितने से लोग प्यार करते हैं? समूचे देश भर में जलकुंभी या जंगली लतर की तरह सैकड़ों-हजारों अंग्रेजी स्कूल खड़े हो गए हैं। अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने के लिए, वे लोग बेचैन रहते हैं। अपने बच्चों की जुबान से बांग्ला का कोई दोहा या छड़ा सुनने से ज़्यादा अंग्रेज़ी 'राइम' सुनने में ज़्यादा दिलचस्पी रखते हैं। बांग्ला बोलते ही, बाच-बीच में अंग्रेज़ी शब्द इस्तेमाल करना, बंगालियों में एक किस्म से सनक या झख है। जिसे अंग्रेजी बोलना आती है, उन्हें ही शिक्षित और पढ़ा-लिखा समझा जाता है। अधिकांश लोगों का विश्वास है कि अपनी विद्या जाहिर करने के लिए अंग्रेजी के अलावा और कोई उपाय नहीं है। जब यह हालत है, तो मैं कैसे कहूँ कि बंगाली को अपनी भाषा पर नाज़ है? बहुत से लोगों का कहना है कि बहुत से अंग्रेजी शब्दों के लिए बांग्ला शब्द नहीं हैं। इसीलिए मनमाने ढंग से अंग्रेजी शब्दों का ही इस्तेमाल जारी है। मुझे यह समझ में नहीं आता कि पारिभाषिकवेत्ता अकादमी में बैठे-बैठे क्या कर रहे हैं? अतलांतिक के ऊपर एक नन्हा-सा द्वीप है! नाम आइसलैंड! कुल ढाई लाख लोग बाशिंदा! उस देश की भाषा में किसी किस्म का अंग्रेजी शब्द प्रवेश नहीं कर पाता। उन्नत तकनीक, खासकर कम्प्यूटर से संबद्ध प्रचुर अंग्रेजी शब्द अब, समूची दुनिया भर में तेजी से फैल रहे हैं, लेकिन आइसलैंड जैसे छोटे-से द्वीप में भी उन्हें शब्दान्तरित किया गया है। भाषा को प्यार करो, तो ऐसा ही होता है। भाषा के मामले में मैं तंगदिल भी नहीं हूँ। एक भाषा का शब्द, दूसरी भाषा में शामिल होकर, उसे समृद्ध बनाता है, यह भी मैं मानती हूँ। लेकिन साथ ही अपनी स्वकीयता और सांस्कृतिक परिचय के लिए, अपनी भाषा की सेवा करना ज़रूरी है, यह मेरा गहरा विश्वास है।

अंग्रेजी भाषा दुनिया की एक बड़ी साम्राज्यवादी शक्ति की भाषा है। उपनिवेशिकता के कारण ही दुनिया की एक छोर से दूसरी छोर तक इस भाषा का सफ़र जारी है। सिर्फ सफ़र ही नहीं, यह भाषा बहुत-सी जातियों पर लादकर, साम्राज्यवादियों ने बहुत-सी भाषाओं की हत्या कर डाली है। वैध और अवैध, दोनों ही तरीकों से यह भाषा आज सांस्कृतिक अग्रासन की तौर पर चारों तरफ घुसपैठ कर गई है। इस वजह से दुनिया की बहुत-सी भाषाओं में ध्वंस की स्थिति नज़र आने लगी है। यह ध्वंस शायद हमारे अंचल में भी जाहिर है। भारतीय उपमहादेश के लोगों के द्वारा बोली जानेवाली भाषा अब खिचड़ी के अलावा, कुछ भी नहीं है। मैं जब किसी बंगाली से बातचीत करती हूँ, मेरे विदेशी दोस्त मेरी तरफ अवाक् नजरों से देखते रहते हैं। वे मझसे पूछते हैं-"तुम. इतने अंग्रेजी शब्द क्यों इस्तेमाल करती हो जो-जो अंग्रेजी शब्द इस्तेमाल करती हो वे शब्द क्या तम्हारी भाषा में नहीं हैं? तुम्हारी भाषा क्या इतनी ही दरिद्र है?" -मुझे शर्म से सिर झुका लेना पड़ता है। यह शर्मिंदगी मेरी है। दुनिया में किसी भी देश में, जब कोई अपनी भाषा में बातें करता है, तो हम जैसे बज्रदरिद्र के अलावा, कोई भी अंग्रेजी शब्द इस्तेमाल नहीं करता। भारत से औपनिवेशिक शक्ति विदा ले चुकी है। लेकिन इस देश के लोगों ने ही आज भी प्रभु-भक्ति के चिह्न थामे रखा है। यह प्रभु-भक्ति ऐसी भयंकर है कि रोजमर्रा के हर कर्मकांड में हमारी निजता का कोई भी नामोनिशान नहीं बचा रहता। नकल-प्रियता हमें इस कदर पसंद है कि हमारी पोशाक, हमारी भाषा, हमारा आहार, हमारी अपनी संस्कृति का विसर्जन देते हुए, हमें ज़रा भी पछतावा नहीं होता। मीरा नायर की 'मानसून वेडिंग' फिल्म में भारतवर्ष के मध्यवित्त, शिक्षित परिवार के लोग दिन में अगर सौ शब्द बोलते हैं, तो उसमें अस्सी शब्द, अंग्रेज़ी के होते हैं। वह फिल्म अंग्रेजीदाँ लोगों का अद्भुत उदाहरण है। सुना है, स्वीडन के बंगलादेश दूतावास में, वर्तमान बंगलादेश के राजदूत, बांग्ला लिखना-पढ़ना-बोलना नहीं जानते। उन्होंने कार्यालय के सभी कागज-पत्र अंग्रेजी में लिखने का निर्देश दिया है! बहुतों का कहना है कि वे बंगलादेश की भाषा न जानते-समझते हुए भी बंगलादेश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और इस बारे उन्हें कोई मलाल हो, ऐसा भी नहीं लगता।

दुनिया के विभिन्न देशों में, मैंने विभिन्न विद्वानों से बात-चीत की है। वे लोग अंग्रेजी या भिन्न देशी एक भी शब्द नहीं जानते, फिर भी वे लोग सिर्फ अपने ही देश में विद्वान व्यक्ति के तौर पर परिचित नहीं हैं, बल्कि और और देशों में भी सम्मानित हैं। ज्ञानी होने के लिए अंग्रेजी जानने की कोई भी ज़रूरत नहीं है सिर्फ अपनी मातृभाषा की जानकारी के दम पर, अनगिनत लोग, विभिन्न क्षेत्रों में, अपनी मेधा और दक्षता की वजह से मशहूर हुए हैं। अमर भी हो गए हैं।

हालाँकि इक्कीस करोड़ लोग, बांग्ला भाषा में ही बातें करते हैं। यह भाषा -दुनिया की छठी या सातवीं वृहद्तम भाषा है, लेकिन पश्चिम बंगाल और बंगलादेश, चूंकि दोनों ही देशों में दरिद्रता विराज करती है। इसलिए बांग्ला भाषा, किसी मूल्यवान भाषा के तौर पर दुनिया के बाज़ार में स्थान नहीं पा सकी! पश्चिमी देशों के बाज़ार में आज जापानी भाषा एक ज़रूरी भाषा है। बड़े-बड़े रेस्तराओं के मेनू में जिस भाषा ने दूसरा स्थान दखल कर रखा है, वह है जापानी भाषा! बड़ी-बड़ी दुकान-पाट में भी यही हाल है। जापानी के जानकार दुभाषिए को नौकरी पर तैनात किया जाता है। इसकी वजह है, जापानी लोग जब पश्चिमी देशों की सैर के लिए निकलते हैं, तो जेब भरकर ढेरों रुपए लाते हैं। बांग्ला भाषा को दुनिया के द्रव्य-बाज़ार में अगर स्थान न मिले, तो कोई हर्ज नहीं। लेकिन इंसान के दिल में तो जगह पा सकती है और वह स्थान तय करने के लिए बांग्ला साहित्य और संस्कृति का मान और ज़्यादा उन्नत करना चाहिए। रवींद्रनाथ ठाकुर और सत्यजित राय के साहित्य और उद्योग ने ढेरों विदेशियों को बांग्ला भाषा के प्रति आकृष्ट किया है; बहुतों ने बांग्ला भाषा सीख भी लिया है। फ्रांसीसी साहित्य के प्रति आकर्षित होकर, मूल फ्रांसीसी भाषा में साहित्य पढ़ने के लिए दुनिया के प्रचुर लोगों ने फ्रांसीसी भाषा सीख ली है। आजकल डेनमार्क के चंद प्रोड्यूसरों ने ऐसी हैरतअंगेज़ फिल्में बनाई हैं कि अनगिनत लोग डेनिश भाषा के प्रति आकर्षित हुए हैं। हालाँकि यह छोटी-सी भाषा है। कुल पचास लाख लोग, इस भाषा में बात-चीत करते हैं फिर भी यह लोकप्रिय है। अन्यान्य भाषाएँ जानने का यह मतलब हरगिज नहीं है कि अपनी भाषा की उपेक्षा की जाए। उपेक्षा का नतीजा कभी भी, किसी भी काल में भला नहीं होता। भाषा अपनी पहचान होती है। अपनी पहचान ही अगर लज्जाजनक हो, तो अपना अस्तित्व बहुत बड़ी शर्मिंदगी है। अपनी भाषा चाहे जितनी भी छोटी, जितनी भी दरिद्र हो, भाषा को प्यार करते हुए जैसे अपनी ही नज़र में विराट हो जाते हैं, वैसे ही दूसरों की नज़रों में भी! बंगलादेश में मैंने देखा है, शिक्षित समूहों में जी-जान से यह कोशिश चल रही है कि विभिन्न अंचलों की आंचलिक भाषा छिपाकर, तथाकथित किताबी विशुद्ध भाषा में बात-चीत की जाए। जुबान से बोली जानेवाली कोई भी भाषा शुद्ध होती है। दुनिया भर में कोई भी भाषा अशुद्ध नहीं होती।

दक्षिणी जर्मनी के बभेरिया अंचल के लोग एक ऐसे ही किस्म की जर्मन भाषा बोलते हैं कि वे लोग खुद भी यह मिली-जुली भाषा पर बेतरह गर्व महसूस करते है। अगर अपनी भाषा पर गर्व न हो तो जाति के तौर पर भी गर्व नहीं किया जा सकता। अगर ऐसे किसी गर्व का अहसास न हो, तो मन में ऐसा हीनताबोध बस जाता है कि मेरुदंड सीधी रखकर, अपने दोनों पाँवों पर, कोई इंसान खड़ा होने में भी कुंठा महसूस करेगा। व्यक्ति से समूह, समूह से जाति, जाति से देश-सभी मुँह के बल गिर पड़ते हैं। मयमनसिंह में पली-बढ़ी लड़की होने के बावजूद किसी ज़माने में खुद मैंने ही मयमनसिंह की आंचलिकता को यथासंभव दबा-छिपाकर, कलकतिया उच्चारण में बांग्ला बोलने की कोशिश शुरू कर दी, इसलिए कि वही भाषा शुद्ध समझी जाती है। शुद्ध की चर्चा भला कौन नहीं करना चाहता? लेकिन बहुत सारे साल विदेशों में गुज़ारने के बाद, वहाँ की आंचलिक भाषा के प्रति लोगों की प्यार-ममता और इसकी खूबसूरती देखने के बाद, मेरे अंदर भी छिपाने का भाव बिल्कुल ही लुप्त हो गया है। शुद्धता की संज्ञा भी उसी तरह लुप्त हो गई है। अब मैं महानंद से विशुद्ध मयमनसिंह भाषा में, किसी भी बंगाली से बात-चीत करती हूँ। आइबाम (आऊँगी) खाइबाम (खाऊँगी) जाइबाम (जाऊँगी) का विशुद्ध सौंदर्य, पहले कभी इस तरह महसूस नहीं किया था, जैसा अब करने लगी हूँ।

'मझे अपनी रिस्टवाच नहीं मिल रही है।', 'किसी आदमी ने मझे इनवाइट किया है'. 'मेरा तो टाइम बर्बाद हो जाएगा। यह जो तीन जमलों में तीन अंग्रेजी शब्द इस्तेमाल किए गए हैं, उनके लिए बांग्ला शब्द नहीं हैं, ऐसी बात नहीं है। इसके बांग्ला शब्द भी मौजूद हैं और वे शब्द अचल भी नहीं हुए। इनके बाकायदा सचल शब्द मौजूद हैं। इसके बावजूद इन्हें इस्तेमाल नहीं किया जाता, आखिर क्यों? नहीं, इसकी कोई भी वजह नहीं है। असल में बंगालियों की ज़्यादातर बातें और कामकाज के पीछे, बहुत बार, कोई वजह नहीं होती। बंगाली बेवजह ही खूब-खूब बातें करते हैं। बेवजह लंबे-चौड़े काम भी करते हैं। गुस्सा-क्षोभ, दलबाज़ी, खून-क़त्ल, हर तरह के कामकाज। बेतुके काम? फरवरी का महीना आते ही बंगालियों का भाषा के प्रति आवेग मानो उमड़ पड़ता है। यह सच है! लेकिन पूरे साल अगर भाषा को प्यार न किया जाए, कल महीने भर के प्यार से चाहे और किसी का भला हो, भाषा को कोई लाभ नहीं होता और भाषा को अगर प्यार न किया जाए, तो अपने को भी प्यार करना असंभव है और अगर अपने को प्यार न किया जाए, तो दूसरों को प्यार नहीं किया जा सकता। दूसरों को अगर प्यार न करें, तो इंसान-इंसान में सौहार्द और प्रीति, जो थोडा-बहत स्वस्थ देश के लिए जरूरी है. वह नष्ट होने में वक्त नहीं लगता। दूसरों की गुलामी करना और दूसरों को प्यार करना-ये दोनों ही दो अलग-अलग चीजें हैं।

रवींद्रनाथ ठाकुर ने कहा है-'रखा है बंगाली बनाकर, नहीं बनाया इंसान!' इसे ही पलटकर कहने का मन होता है-'बंगाली अगर इंसान बनना चाहे, तो पहले उसे बंगाली होना होगा।' देश और जाति को, जाति की भाषा और संस्कृति को प्यार करते हुए, रफीक सलाम बरक़त के वारिसों ने बंगलादेश नामक देश, दुनिया में भाषा-आंदोलन के देश के तौर पर हमेशा-हमेशा सम्मानित होता रहे, इस किस्म का इंतज़ाम करें, इसकी मुझे सिर्फ उम्मीद ही नहीं, यह मेरा सपना भी है।



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    अनुक्रम

  1. आपकी क्या माँ-बहन नहीं हैं?
  2. मर्द का लीला-खेल
  3. सेवक की अपूर्व सेवा
  4. मुनीर, खूकू और अन्यान्य
  5. केबिन क्रू के बारे में
  6. तीन तलाक की गुत्थी और मुसलमान की मुट्ठी
  7. उत्तराधिकार-1
  8. उत्तराधिकार-2
  9. अधिकार-अनधिकार
  10. औरत को लेकर, फिर एक नया मज़ाक़
  11. मुझे पासपोर्ट वापस कब मिलेगा, माननीय गृहमंत्री?
  12. कितनी बार घूघू, तुम खा जाओगे धान?
  13. इंतज़ार
  14. यह कैसा बंधन?
  15. औरत तुम किसकी? अपनी या उसकी?
  16. बलात्कार की सजा उम्र-कैद
  17. जुलजुल बूढ़े, मगर नीयत साफ़ नहीं
  18. औरत के भाग्य-नियंताओं की धूर्तता
  19. कुछ व्यक्तिगत, काफी कुछ समष्टिगत
  20. आलस्य त्यागो! कर्मठ बनो! लक्ष्मण-रेखा तोड़ दो
  21. फतवाबाज़ों का गिरोह
  22. विप्लवी अज़ीजुल का नया विप्लव
  23. इधर-उधर की बात
  24. यह देश गुलाम आयम का देश है
  25. धर्म रहा, तो कट्टरवाद भी रहेगा
  26. औरत का धंधा और सांप्रदायिकता
  27. सतीत्व पर पहरा
  28. मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं
  29. अगर सीने में बारूद है, तो धधक उठो
  30. एक सेकुलर राष्ट्र के लिए...
  31. विषाद सिंध : इंसान की विजय की माँग
  32. इंशाअल्लाह, माशाअल्लाह, सुभानअल्लाह
  33. फतवाबाज़ प्रोफेसरों ने छात्रावास शाम को बंद कर दिया
  34. फतवाबाज़ों की खुराफ़ात
  35. कंजेनिटल एनोमॅली
  36. समालोचना के आमने-सामने
  37. लज्जा और अन्यान्य
  38. अवज्ञा
  39. थोड़ा-बहुत
  40. मेरी दुखियारी वर्णमाला
  41. मनी, मिसाइल, मीडिया
  42. मैं क्या स्वेच्छा से निर्वासन में हूँ?
  43. संत्रास किसे कहते हैं? कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन से?
  44. कश्मीर अगर क्यूबा है, तो क्रुश्चेव कौन है?
  45. सिमी मर गई, तो क्या हुआ?
  46. 3812 खून, 559 बलात्कार, 227 एसिड अटैक
  47. मिचलाहट
  48. मैंने जान-बूझकर किया है विषपान
  49. यह मैं कौन-सी दुनिया में रहती हूँ?
  50. मानवता- जलकर खाक हो गई, उड़ते हैं धर्म के निशान
  51. पश्चिम का प्रेम
  52. पूर्व का प्रेम
  53. पहले जानना-सुनना होगा, तब विवाह !
  54. और कितने कालों तक चलेगी, यह नृशंसता?
  55. जिसका खो गया सारा घर-द्वार

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